नमस्कार,
मैं हूं आपका मेजबान या दोस्त #अविरल जैन। आपका घूमोग भरके ब्लॉग में स्वागत करता हूं। माई #अविरल जैन अपने इस ब्लॉग के जरिए देश के ऐसे अनछुई जगहो को देखना चाहता हूं। जो भारत देश के इतिहास को याद करता है आज भी अपने में समाये हुए है। भारत का इतिहास था कहानी देखना चाहता हूँ। #यात्रा के वीडियो देखने के लिए अभी #ghumog.com को सब्सक्राइब करें.
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लुटरू महादेव गुफा(इतिहास)
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हिमाचल प्रदेश के अर्की सोलन जिले में लुटरू महादेव मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से सिगरेट का चढ़ावा भगवान शिव को चढ़ता है। सोलन जिला को प्रदेश का प्रवेश द्वार माना जाता है तथा अर्की जिला सोलन कीएक प्रमुख तहसील है। मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह जगह स्वतंत्रता से पहले अर्की बाघल रियासत के नाम से प्रसिद्ध थी। आसपास के क्षेत्र में प्राचीन मन्दिरों व गुफाओं की भरमार है। जिले के शीश पर ही पवित्र लुटरू महादेव मंदिर गुफा स्थित है। आदि काल से प्राकृतिक स्वनिर्मित शिवलिंग के कारण बाघल रियासत की स्थापना से पहले भी साधु संत यहां एकांत वास करने के लिए आते थे।
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परशुराम भगवान से गहरा नाता
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लुटरू गुफा को भगवान परशुराम की कर्म स्थली भी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सहस्र बाहु को मारने के बाद जब परशुराम अपने पिता के आदेश से शिव की आराधना करने हिमालय में आए थे तो उनके चरण यहां पड़े थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा भागीरथ के प्रयत्न से गंगा स्वर्ग में शिवजी की जटाओं में सिमटी थी तो इसके छींटे यहां लुटरू धार पर भी पड़े थे जो आज भी यहां शकनी गंगा के रूप में विद्यमान है तथा यही से अर्की नगर के लिए पानी की आपूर्ति की जाती है।
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लुटरू गुफा की खूबी
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आग्नेय चट्टानों से बनी इस गुफा की लंबाई पूर्व से पश्चिम की तरफ लगभग 25 फुट तथा उत्तर से दक्षिण की ओर 42 फुट है । गुफा की ऊंचाई तल से 6 फुट से 30 फुट तक है। गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 5500 फुट है तथा इसके चारों ओर 150 फुट का क्षेत्र एक विस्तृत चट्टान के रूप में फैला है। गुफा के अंदर मध्य भाग में 8 इंच लंबी प्राचीन प्राकृतिक शिवलिंग मौजूद है।
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कभी ऐसे होता था शिवलिंग का अभिषेक
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यह गुफा कुछ इस प्रकार स्वनिर्मित है कि बारिश के मौसम में पानी की बौछारें आसमान से इसमें प्रवेश तक नहीं कर पाती हैं। गुफा के ऊपर ढलुआ चट्टान के रूप में बस एक कोने से रोशनी अंदर आ सकती है। गुफा की छत में परतदार चट्टानों के रूप में अलग-अलग लंबाई के छोटे-बड़े गाय के थनों के आकार के शिवलिंग दिखाई पड़ते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार पहले इनसे दूध की धारा बहती थी लेकिल वर्तमान में इन प्राकृतिक थनों से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं।
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मंदिर में प्रवेश के लिए चढ़नी होती है 100 सीढियां
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वर्तमान में गुफा में प्रवेश के लिए लगभग 100 सीढ़ियां बनाई गई हैं तथा गुफा के नीचे विशाल धर्मशाला का निर्माण किया गया है। यहां लोग दूर-दूर से गुफा के दर्शन करने आते हैं। हर वर्ष महाशिवरात्रि के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। मंदिर में सबसे आकर्षण की बात यह है कि यहां शिवलिंग को लोग सिगरेट पीते देखते हैं।
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चमत्कारी रूप से खत्म होती है सिगरेट
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· मंदिर के बारे में लोगों का मानना है कि भगवान शिव उन्हें निराश नहीं करते और वह सिगरेट पीते हैं। यहां पर जो सिगरेट चढ़ाते हैं उसे कोई बुझाता नहीं है बल्कि खुद ब खुद वह सिगरेट बुझ जाती है। आमतौर पर शिवलिंग की सतह पतली होती है, मगर इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की सतह में काफी गड्ढे से बने हैं। लोग इन्हीं गड्ढों में सिगरेट फंसा देते हैं। कुछ ही देर में सिगरेट खुद ब खुद ऐसे सुलगने लगती है, मानो कोई कश ले रहा हो। भगवान के चमत्कार पर यकीन करने वालों के लिए तो यह एक चमत्कार है ।
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कैसे पहुंचें
अर्की से नजदीकी मुख्य हवाई अड्डा लगभग 100 किलोमीटर दूर चंडीगढ़ में स्थित है। यह हवाई अड्डा देश के प्रमुख हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। यहां से अर्की जाने के लिए टैक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध है। अर्की से निकटतम रेलवे स्टेशन लगभग 40 किलोमीटर दूर कालका रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कालका स्टेशन से अर्की पहुंचने के लिए आप आसानी से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। सड़क मार्ग से भी आसानी से अर्की पहुंचा जा सकता है। दिल्ली, चंडीगढ़, शिमला और धरमपुर से अर्की जाने के लिए लगातार बसें उपलब्ध हैं। अर्की पहुंचने के लिए बस से यात्रा करना परिवहन का सबसे सस्ता साधन है।
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